देश में स्टार्टअप के बाद अब यूनिकॉर्न और डेकाकॉर्न का तूफान, जानें वजह

नई दिल्ली. देश की मजबूत अर्थव्यवस्था और विदेशी निवेश की बदौलत स्टार्टअप खूब तरक्की कर रहे हैं. इसके चलते अब वे तेजी से यूनिकॉर्न (Unicorn) यानी एक अरब डॉलर से ज्यादा के मूल्यांकन वाली कंपनियों में बदल रहे हैं. यही नही, बायजू जैसे स्टार्टअप डेकाकॉर्न हो गए हैं. इसके चलते, इनमें नौकरियाें के भरपूर मौके बन रहे हैं.
अप्रैल के इस सप्ताह लगभग रोज ही एक नए यूनिकॉर्न ने अपना नाम दर्ज कराया है. वेंचर कैपिटल निवेशकों और विशेषज्ञों के अनुसार वर्ष 2025 तक भारत में ऐसी इकाइयों की संख्या बढ़कर 150 हो जाएगी. स्टार्टअप उद्योग के सूत्रों के अनुसार यूनिकॉर्न की फेहरिस्त में पहली 50 स्टार्टअप इकाइयां एक या दो वर्षों में जुड़ जाएंगी. ऐसी इकाइयों को आगे बढ़ाने के लिए रकम की भी कोई कमी नजर नहीं आ रही है.
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पीई से रकम मिलने की वजह से स्टार्टअप कर रहे हैं ग्रोथ
क्रेडिड सुइस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी इक्विटी कंपनियों से लगतार आ रही रकम से भारत में पूंजी की कमी से निपटने में काफी मदद मिली है. भारतीय कंपनियों के लिए निजी इक्विटी कंपनियों में रकम का प्रवाह बढऩा स्टार्टअप इकाइयों की संख्या में इजाफे की एक अहम वजह है. पीई इस कदर बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं कि निजी बाजार में जुटाई गई रकम के आंकड़े पिछले दशक के प्रत्येक अंतिम वर्ष में सार्वजनिक बाजार में हुए लेनदेन से अधिक हो गए हैं.
एशिया में इस समय पीई कंपनियों के पास 361 अरब डॉलर रकम
प्रेकिन के आंकड़ों के अनुसार भारत पर केंद्रित करीब 35 प्राइवेट इक्विटी कंपनियां 8 अरब डॉलर रकम जुटाना चाह रही हैं और करीब 80 वेंचर कैपिटल कंपनियां संयुक्त रूप से 8.3 अरब डॉलर रकम जुटाने की योजना तैयार कर रही हैं. कहानी यहीं खत्म नहीं होती. प्रेकिन के जून 2020 के आंकड़ों के अनुसार एशिया में इस समय पीई कंपनियों के पास 361 अरब डॉलर रकम है, जिसे वे जब चाहें खर्च कर सकती हैं.
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पेंशन और बीमा फंड प्रबंधक ब्याज दरें निचले स्तर
गौरतलब है कि भारत जैसे प्रति व्यक्ति कम आय वाले देशों में अधिक मात्रा में पूंजी आम तौर पर उपलब्ध नहीं होती है. पिछले एक दशक में पूरी दुनिया में प्राइवेट इक्विटी कंपनियों का दबदबा बढ़ा है. पेंशन और बीमा फंड प्रबंधक ब्याज दरें काफी निचले स्तर पर होने की वजह से वैकल्पिक परिसंपत्तियों में रकम लगा रहे हैं. इस वजह से प्रावइेट इक्विटी कंपनियों का बोलबाला कम होता नहीं दिख रहा है.
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यूनिकॉर्न बनने से क्या फायदा
ईवाई इंडिया में पार्टनर एवं नैशनल लीडर (ई-कॉमर्स ऐंड कंज्यूमर इंटरनेट) अंकुर पाहवा ने कहा कि यूनिकॉर्न के लिए निवेशक जिन बातों पर विचार करते हैं कि उनमें मुनाफा अर्जित करने का परिदृश्य, बाजार का आकार, कंपनी की कुव्वत और कारोबार वृद्धि की संभावनाएं आदि शामिल हैं. उनके मुताबिक, हर जगह डिजिटलीकरण की प्रक्रिया जोर पकडऩे और इनमें स्टार्टअप के सबसे आगे रहने से निवेशकों की रुचि बढऩी स्वाभाविक ही है. जिस तेजी से रकम आ रही है वह पिछले वर्षों के स्तर से अधिक हो सकती है.

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