कुलदीप सिंगोरिया. नई दिल्ली
सामाजिक सरोकारों से जुड़े काम अमूमन सामाजिक संगठन या एनजीओ करते हैं लेकिन नामी संस्थानों से पढ़े-लिखे नौजवान का इस काम में जुट जाना अपवाद ही होता है. ऐसा ही एक अपवाद 30 वर्षीय अनिकेत डोगरे का है. सरकारी या बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों में उच्च पदों पर नौकरी की बजाय डोगरे ने छह साल पहले एक कठिन डगर चुनी. एनजीओ की बजाय कमजोर या सामाजिक रूप से वंचित तबके के लिए अपनी कंपनी बना ली.
स्टार्टअप हकदर्शक के जरिए अनिकेत ने महज छह साल में ही एक लाख से ज्यादा परिवारों तक सरकारी योजनाओं को पहुंचा दिया. यही नहीं, अब हर महीने उनके स्टार्टअप से एक लाख एप्लीकेशन प्रोसेस होते हैं. इसी वजह से अनिकेत को दुनिया की प्रतिष्ठित पत्रिका फोर्ब्स ने सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों की एशिया अंडर 30 सूची में स्थान दिया है.
कहीं बड़ी कंपनियों के कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के फंड से तो कहीं एनजीओ और सरकार के फंड से अनिकेत ने लोगों की मदद की. यही नहीं, सरकार द्वारा तय किए शुल्क से ही लोगों तक विभिन्न सेवाएं पहुंचा दी. अपने इस अनूठे आइडिया के दम पर उनके स्टार्टअप्स में करीब 15 हजार महिला उद्यमी जुड़ी हुई हैं जो कि फील्ड में कमजोर तबके के परिवारों तक पहुंच कर उन्हें सरकारी योजनाओं का फायदा दिलाने का काम करती है. हकदर्शक के को-फाउंटर व सीईओ अनिकेत बताते हैं कोरोना काल में फंडिंग की खासी दिक्कतें आईं. कंपनियों के पास भी नकदी की कमी थी और वर्क फ्रॉम होम की वजह से पेमेंट में तीन से छह महीने की देरी हो रही है. लेकिन इस सबसे निपटते हुए कोरोना में ज्यादा लोगों को सामाजिक योजनाएं पहुंचाने के लिए अपनी टीम का विस्तार कर लिया. इस दौरान 300 लाेगों को नौकरी भी दी. अनिकेत बताते हैं कि कोरोना काल में 10 हजार से ज्यादा छोटे उद्योगों के लिए नई पहल शुरू की. कोरोना में उद्योगों को जो नुकसान हुआ था, उससे उबारने के लिए सरकारी स्कीमों के जरिए मदद पहुंचाई.
अनिकेत बताते हैं कि कोरोना से पहले ग्रामीण क्षेत्र पर फोकस था लेकिन बाद में शहरी क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों की समस्या सामने आई. इसे देखते हुए शहरी क्षेत्रों पर फोकस किया गया. मजदूरों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत उनकी पहचान की थी. इसलिए मजदूरों के नामांकन से लेकर तमाम दस्तावेजों पर काम किया गया. कोरोना की वजह से टर्नओवर जितना बढ़ना चाहिए था, वह नहीं हो पाया. पहले लक्ष्य 15 करोड़ रुपए का था, जिसे अब कम करके 12 करोड़ कर दिया गया है. हालांकि काम दोगुना हो गया है. इसलिए स्टार्टअप की प्राफिटेबिलिटी कम हुई है. अनिकेत बताते हैं कि प्रॉफिट से ज्यादा अहम लोगों तक मदद पहुंचाना है. इसलिए प्रॉफिट की चिंता किए बगैर काम बढ़ा रहे हैं. इसी का नतीजा है कि अब हर महीने एक लाख आवेदन प्रोसेस होते हैं.
ग्रेज्युएशन के दौरान सरकारी स्कूलों में पढ़ाते थे अनिकेत
हिमाचल के शिमला में रहने वाले अनिकेत बचपन में दिव्यांग बच्चों को पढ़ाया करते थे. दिल्ली स्थित श्री राम कॉलेज ऑफ कामर्स में ग्रेज्यूशन के दौरान भी सरकारी स्कूल में पढ़ाने का सिलसिला जारी रखा. अनिकेत बताते हैं कि टीच फॉर इंडिया की फैलोशिप के लिए पुणे में झुग्गी बस्तियों में काम किया तो पता चला कि लोगों को सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं है. लिहाजा, ज्ञान प्रकाश फाउंडेशन और इंडस एक्शन के साथ लोगों तक सही जानकारी पहुंचाने का काम किया है. तब ही उन्हें हकदर्शन स्टार्टअप्स शुरू करने का आइडिया दिमाग में कौंधा. आज उनके पास आइटसी, गोदरेज, अंबुजा सीमेंट, एनजीओ सेव द चिल्ड्रन, स्वदेश फाउंडेशन समेत 100 से ज्यादा कंपनियां जुड़ी हैं. हकदर्शक की कोर टीमफील्ड से जुड़े लोगों से संपर्क रखने के साथ सरकारी योजनाओं को आसान भाषा में हकदर्शक की वेबसाइट पर उपलब्ध कराती है. यही टीम, सरकार, एनजीओ और कंपनियों से संपर्क कर सबको एक प्लेटफार्म पर लाकर वास्तविक हकदारों तक सेवाओं की पहुंच संभव बनाती है.
कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में काम कर रहे 10 करोड़ मजदूरों तक पहुंचने का है लक्ष्य
वर्ष 2015 में उनके स्टार्टअप्स के लिए एंजेल फंडिंग मिली. महज पांच साल में टर्नओवर 6 करोड़ रुपए हो गया. अब यह 12 करोड़ पार करने वाला है. 17 राज्यों में कंपनी काम कर रही है. अब अनिकेत का लक्ष्य है निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले 10 करोड़ मजदूर. इन मजदूरों के लेबर कार्ड बनवानाकर उन तक शिक्षा व आवास आदि की सुविधा मुहैया कराने के लिए उनकी कंपनी काम करेगी. इससे पहले, हकदर्शक ने करीब दस हजार लोगों को आयुष्मान भारत, 15 हजार को प्रधानमंत्री आवास, 10 हजार को उज्जवला योजना के सिलेंडर और करीब 40 हजार परिवार को राशन कार्ड, पैन कार्ड, आधार, आय प्रमाण पत्र आदि के दस्तावेज बनवाने में मदद की है.
50 से 100 रुपए के मामूली शुल्क में देते हैं सेवाएं
अनिकेत बताते हैं कि उनकी कंपनी सरकार द्वारा तय किए गए शुल्क ही लेती है. यह शुल्क 50 से 100 रुपए तक होता है. आधार बनवाने के लिए कोई शुल्क नहीं होता है. जबकि सरकारी योजनाओं के लिए स्थानीय प्रशासन और एनजीओ से साझेदारी की जाती है. उनकी टीम का मुख्य काम ऐसे लोगों तक पहुंचना होता है जो किसी भी सरकारी योजनाओं की पहुंच में नहीं है. इसके लिए उनकी 15 हजार की महिलाओं की टीम काम में आती है. अनिकेत कहते हैं कि करीब 20 कर्मचारी केंद्र व राज्य सरकारों की योजनाओं को स्थानीय भाषा में अनुवाद कर वेबसाइट पर अपलोड करते हैं. अनुवाद इस स्तर का होता है कि कोई भी आसानी से समझ ले. इस काम के लिए कंपनी कोई शुल्क नहीं लेती है.
हकदर्शक से अब तक मिला इतना फायदा
- 519 करोड़ रुपए की बेनीफिशियर्स को सरकारी व निजी संस्थाओं की योजनाओं की मदद
- 716435 नागरिकों तक पहुंच बनाई
- 429205 आवेदनों को अब तक प्रोसेस किया
- 10921 लोगों को ट्रेनिंग दी है स्टार्टअप ने
- 7200 स्कीम्स को 11 भाषाओं में डिजिटाइज किया
- 507 जिलों में पहुंच है हकदर्शक की टीम की
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Tags: Indian startups, Success Story
FIRST PUBLISHED : January 26, 2021, 17:45 IST