32 साल पहले कश्मीरी पंडितों द्वारा कश्मीर विद्रोह के दौरान सहे गए क्रूर कष्टों की सच्ची कहानी है, द कश्मीर फाइल्स। नरसंहार के पीड़ितों के दर्द, पीड़ा, संघर्ष और आघात का दिल दहला देने वाला आख्यान है, द कश्मीर फाइल्स। कभी न बताया गया सच है, द कश्मीर फाइल्स।
ऐसे में जब इस फिल्म को इस्लामोफोबिक नाम दिया जाए, तब गुस्सा आना तो लाजमी है। यही कारण है कि विवेक अग्निहोत्री ने इसपर खुलकर बात करने का फैसला किया। गुरुवार को दिल्ली में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान निर्देशक ने कहा, “चिंता वास्तव में आतंकवाद है। फिल्म में मुस्लिम शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है। फिल्म में पाकिस्तान या पाकिस्तानी शब्द का भी इस्तेमाल नहीं किया गया है। फिल्म में केवल आतंकवाद के खिलाफ बात की गई है। ऐसे में इसे टेररफोबिक क्यों नहीं कहा गया?
विवेक अग्निहोत्री आगे कहते हैं, ‘द कश्मीर फाइल्स’ से पहले ‘फिजा’, ‘फना’, ‘मिशन कश्मीर’ आदि जैसी फिल्में भी कश्मीर पर आधारित थीं, लेकिन इन्हें कभी इस्लामोफोबिक नहीं कहा गया। इसका मतलब यह है कि अगर आप आतंकवादी को सही ठहराते हैं, तो आप मानवता के मसीहा हैं, लेकिन अगर आप आतंकवाद के खिलाफ बात करते हैं, तो आप इस्लामोफोबिक हैं।”
निर्देशक आगे कहते हैं, “कश्मीर फाइल्स से पहले कश्मीर पर बनी सभी फिल्म बड़े प्रोडक्शन हाउस द्वारा बनाई गई थीं, जिनमें सबसे बड़े सितारे शामिल थे। उन सभी फिल्मों को 1990 के दशक में सेट किया गया था। एक भी फिल्म में कश्मीरी हिंदुओं के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया, नरसंहार को तो भूल जाइए।
उन्होंने कहा कि फिल्म का पहला दृश्य हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भाईचारे को दर्शाता है। इस दृश्य में “एक हिंदू लड़के शिव को बुरे लोग पीट रहे होते हैं और अब्दुल उसे जाकर बचाता है। वहीं दूसरे दृश्य में पुष्कर नाथ ने अब्दुल की जान बचाई। दरअसल, फिल्म का सबसे अहम प्रोड्यूसर एक मुसलमान है। क्या वह इस्लामोफोबिक है? फिल्म देश में इस्लामोफोबिया को बढ़ावा नहीं देती है, बल्कि “आतंकवाद” के खिलाफ बात करती है।